खेल डेस्क. अब ये तय हो चुका है कि भारतीय टीम 22 नवंबर को अपना पहला डे- नाइट टेस्ट मैच खेलेगी। बांग्लादेश के खिलाफ दो टेस्ट मैच की सीरीज का कोलकाता में होने वाला दूसरा टेस्ट डे-नाइट होगा। भारत के लिए डे-नाइट टेस्ट की चुनौतियां भी उतनी ही हैं, जितना रोमांच। मैच की टाइमिंग, टिकट के दाम, गुलाबी बॉल से लेकर ओस तक डे-नाइट टेस्ट का उद्देश्य पूरा करने में अहम भूमिका निभाएंगे। ऐसे 4 फैक्टर के बारे में बात करते हैं, जो डे-नाइट टेस्ट में अहम किरदार निभाएंगे।
पहली बार ठंड के मौसम में हो रहा है डे-नाइट टेस्ट
अब तक 11 डे-नाइट टेस्ट हुए हैं, पर कोलकाता टेस्ट पहला मौका होगा, जब डे-नाइट टेस्ट ठंड के मौसम में खेला जाएगा। यानी ओस पड़ना तय है। ड्यू-फैक्टर कितना बड़ा होता है, ये लिमिटेड ओवर मैचों में देखा जा चुका है। शाम 5 बजे के आस-पास से ही ओस गिरने लगती है। उस वक्त गेंदबाजी करने वाले गेंदबाजों के लिए गेंद पर ग्रिप बनाना मुश्किल होगा।
स्पिनर्स को मिलने वाली मदद कम होगी
ओस से तेज गेंदबाजों की तुलना में स्पिनर्स को ज्यादा नुकसान होता है। उनकी गेंद पर ग्रिप नहीं बनती। गेंद हाथ से फिसलती है। इस वजह से टर्न कराने और गेंद को मनमाफिक जगह पर टप्पा खिलाने में दिक्कत होती है। घर में खेलते हुए भारतीय टीम की ताकत स्पिनर्स ही होते हैं। ये देखना रोचक होगा कि भारतीय स्पिनर्स ओस में कैसे गेंदबाजी करते हैं।
मैच के शुरू और खत्म होने के समय से भीड़ और ओस का असर तय होगा
भारत में टेस्ट मैच अमूमन सुबह 9:30-10 बजे शुरू होकर शाम को 5 बजे तक खत्म हो जाता था। डे-नाइट टेस्ट के 1:30 से 2 बजे तक शुरू होने की उम्मीद है। रात 9:30-10 बजे तक मैच चलेगा। यानी एक सेशन से कुछ ज्यादा खेल फ्लड लाइट्स में खेला जाएगा। 3-4 बजे तक ऑफिस आवर्स खत्म होने के बाद अच्छी भीड़ भी आने की उम्मीद रहेगी।
विदेशी दौरों पर भी टीम इंडिया का कम से कम एक टेस्ट डे-नाइट होना तय
पिछले साल जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई थी, तो वहां एक डे-नाइट टेस्ट भी प्रस्तावित था। भारतीय टीम ने ये कहकर साफ मना कर दिया कि अभी खिलाड़ी डे-नाइट टेस्ट के लिए तैयार नहीं हैं। अब जब टीम इंडिया अपने घर में डे-नाइट टेस्ट खेल ले रही है, तो वह विदेशी दौरों पर भी इससे मना नहीं कर सकेगी।
पिच पर घास ज्यादा, आउटफील्ड पर कम रखें: क्यूरेटर दलजीत
बीसीसीआई के पूर्व चीफ पिच क्यूरेटर दलजीत सिंह का कहना है कि डे-नाइट टेस्ट के लिए पिच पर घास ज्यादा और आउटफील्ड पर कम रखनी चाहिए। दलजीत कहते हैं- ‘ओस तो ऐसा फैक्टर है, जिसे आप खत्म नहीं कर सकते। इसके असर को ही कुछ कम करने की कोशिश कर सकते हैं। इसके लिए आउटफील्ड पर पिच की तुलना में कुछ ज्यादा और बड़ी घास रखनी चाहिए। जब एडिलेड में पहला डे-नाइट टेस्ट खेला गया था, तब पिच पर 11 मिमी और आउटफील्ड पर ज्यादा घास छोड़ी गई थी।’
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